Jagdalpur: आंध्र समाज द्वारा आँवला पूजा, एक धार्मिक एवं सांस्कृतिक अनुष्ठान

Jagdalpur: कार्तिक मास पूजा विधान के तहत आंध्र समाज द्वारा जगदलपुर के लामनी पार्क में वनभोजनम कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें समाज के लोग आंवले के पेड़ की पूजा करने के लिए बड़ी संख्या में एकत्र हुए। आंवला पूजा के इस अवसर पर समाज के सदस्य अपने परिवारों के साथ उपस्थित हुए और भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश का स्वरूप मानकर आंवला पेड़ की पूजा की।

तेलुगु भाषी समुदाय के लोग इस पूजा में विशेष रूप से शामिल हुए, और आंवले के पेड़ की पूजा करके अपने संतान और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की। कार्यक्रम में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक किरण देव, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य विद्याशरण तिवारी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस दौरान किरण देव ने समाज के उत्थान और प्रगति में अपनी मदद का आश्वासन दिया और समाज के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की बात कही।

कार्यक्रम में आंध्र समाज के सचिव सुब्बाराव ने अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया। पूजा विधान पंडित गिरीश शर्मा के मार्गदर्शन में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में एसएस नागभूषण, सेनापति राजू, दिगंबर राव, श्रीनिवास राव, नरसिंह राव, के. आदिनारायण राव, एम. गोपाल नायडू, के. संतोष, कामेश राव, बसंत राव, अप्पन्ना, राजेश जंगम समेत अन्य प्रमुख लोग उपस्थित रहे।

वनभोजनम् कार्यक्रम कार्तिक माह में विशेष रूप से दांपत्य जोड़ों द्वारा किया जाता है, जिसमें वे अपने संतान और परिजनों के सुख-समृद्धि के लिए आंवले के पेड़ की पूजा करते हैं और वहां भोजन करते हैं। तेलुगू समाज द्वारा यह पूजा हर साल धूमधाम से मनाई जाती है। इस विशेष अवसर पर कार्यक्रम में मशहूर गायक दीपक वाधवानी, वंदना पॉल और चंदु नागवंशी ने भक्तिमय और फिल्मी गीतों के साथ माहौल को और भी उत्साहपूर्ण बना दिया।

वंदना पॉल के द्वारा गाए गए तेलुगु गानों ने लोगों को न केवल झूमने पर मजबूर किया, बल्कि हर उम्र के लोगों को आनंदित भी किया। छोटे-छोटे बच्चे, महिलाएं और बड़े बुजुर्ग सभी ने विभिन्न प्रकार की मनोरंजन गतिविधियों और खेल प्रतियोगिताओं में उत्साह से भाग लिया। बच्चों और युवाओं ने नृत्य और गीत प्रतियोगिता में अपनी प्रतिभा दिखाई, जिससे मंच पर एक अलग ही रंग जमा दिया गया।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण कर रही थीं और उन्हें भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा करनी थी। तब उन्हें यह ध्यान आया कि तुलसी और बेल दोनों के गुण आंवले में पाए जाते हैं, और तुलसी भगवान विष्णु को और बेल भगवान शिव को अतिप्रिय है। इस सोच के बाद, माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को भगवान विष्णु और भगवान शिव का प्रतीक मानकर उसकी पूजा की। मान्यता है कि माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान शिव और भगवान विष्णु को भोजन कराया था और स्वयं भी वहां बैठकर भोजन किया था। इसी कारण कार्तिक महीने में आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने की परंपरा है।

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