Pandit Pradeep Mishra in Raipur : चौथे दिन पंडित प्रदीप मिश्रा ने बताया परिश्रम का महत्व

Pandit Pradeep Mishra in Raipur :  अंतर्राष्ट्रीय कथाकार पंडित प्रदीप मिश्रा जी ने शिव महापुराण कथा के चौथे दिवस में श्रद्धालुओं से कहा कि, “अंग्रेजी नव वर्ष में अपने आप को बदलने का प्रयास करो।” उन्होंने गायत्री परिवार के नारे का उद्धरण देते हुए कहा कि, “हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा,” और यह नारा हमें यह सिखाता है कि अगर हम अपने जीवन में सुधार लाते हैं तो इसका प्रभाव हमारे परिवार, समाज, और आसपास के वातावरण पर भी पड़ेगा।

पंडित जी ने भक्तों से अनुरोध किया कि वे नव वर्ष के आगमन पर अपनी बुरी आदतों को छोड़ने और आत्म सुधार की दिशा में कदम बढ़ाने का प्रयास करें। उन्होंने भगवान शिव का उदाहरण देते हुए कहा कि भगवान भोलेनाथ ने भी अपने सारे सुखों को त्याग कर मृत्यु लोक में रहकर भक्तों के कष्टों का निवारण किया। इससे यह संदेश मिलता है कि हम सभी को अपने जीवन में आत्मबद्धता, त्याग और सेवा की भावना को अपनाना चाहिए।

इसके साथ ही पंडित जी ने भक्तों को अपनी मेहनत और परिश्रम से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण उपदेश भी दिए। उन्होंने बताया कि, “जो भी भक्त सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं, वे अपनी मेहनत को दोगुना करें और प्रतिदिन एक लोटा जल भगवान भोलेनाथ को अर्पित करें।” उन्होंने यह भी कहा कि भगवान शिव ने लाखों लोगों के जीवन में सुधार लाने का काम किया है और जिन भक्तों ने एक लोटा जल अर्पित किया है, उन्हें निश्चित रूप से पुण्य का फल प्राप्त हुआ है। पंडित जी ने यह भी बताया कि भक्ति में निरंतरता और मेहनत की आवश्यकता होती है, क्योंकि भगवान हमें हमारे कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं।

पंडित प्रदीप मिश्रा जी ने संतों के महत्व को भी बताया। उन्होंने एक दिलचस्प कहानी साझा की जिसमें गुरु नानक देव जी ने एक गरीब बुढ़ी महिला के घर रहकर उसकी मदद की। गुरु नानक देव जी ने अपनी हंसी और भगवान के नाम का जाप करके उस महिला के जीवन में सुधार किया। कुछ समय बाद, जब वह वापस लौटे, तो उन्होंने देखा कि उसी महिला का घर एक महल में बदल चुका था। इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि संतों और महात्माओं का सम्मान करना और उनके आशीर्वाद से जीवन में परिवर्तन लाना बहुत महत्वपूर्ण है। पंडित जी ने बताया कि जहां कहीं भी संतों से मिलें, उन्हें प्रणाम करें और उनके आशीर्वाद का लाभ लें।

राजा अज के एक उदाहरण का उल्लेख करते हुए पंडित जी ने यह भी बताया कि सफलता पाने के लिए हमें अपनी मेहनत से ही कुछ प्राप्त करना चाहिए। उन्होंने बताया कि भगवान शंकर और माता पार्वती ने राजा अज की परीक्षा ली थी। जब राजा ने अपनी मेहनत से कुछ दान किया, तो उसे भगवान ने आशीर्वाद दिया और उसके द्वारा किए गए एक छोटे से कार्य से उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम दशरथ पड़ा। इस कथा से यह सिखने को मिलता है कि अगर हम खुद की मेहनत से कुछ अर्पित करें, तो उसका फल अवश्य मिलता है।

कथा के समापन पर पंडित जी ने समाज में संस्कारों के महत्व पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि जैसे शरीर को उचित आहार की आवश्यकता होती है, वैसे ही बच्चों को संस्कारों की भी आवश्यकता होती है। अगर बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं मिलते तो उनका जीवन कुपोषित हो सकता है। इसलिए हमें बच्चों में अच्छे संस्कारों का बीज बोना चाहिए और उन्हें धार्मिक कार्यों में भेजना चाहिए ताकि उनके जीवन में संस्कारों का पोषण हो सके।

शिव महापुराण कथा के इस आयोजन में रायपुर में आयोजित कार्यक्रम को देखकर पंडित जी ने आयोजकों की सराहना की और कहा कि यह आयोजन बहुत ही सुंदर और व्यवस्थित तरीके से किया गया है। कथा स्थल पर कोई दुकान नहीं थी और सिर्फ भक्तों को भक्ति की भावना से कथा सुनने का अवसर मिला, जो एक आदर्श आयोजन था।

इसके अलावा, आयोजन समिति ने भंडारे की व्यवस्था भी की थी, जिसमें लाखों भक्त प्रतिदिन प्रसाद ग्रहण कर रहे थे। भोजन शाला प्रभारी भिखम देवांगन ने बताया कि प्रतिदिन लगभग सवा लाख भक्त भंडारे का प्रसाद लेते हैं और इसमें लगभग 100 कार्यकर्ता लगे हुए हैं, जो सुबह से लेकर रात तक भोजन बनाने और वितरण का काम करते हैं। इस भंडारे में रोज 60 क्विंटल चावल, 3 क्विंटल दाल, और 10 क्विंटल सब्जी का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे हर भक्त को प्रसाद प्राप्त हो रहा है।

इस आयोजन में प्रदेश के उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन, देवांगन समाज के अध्यक्ष डॉक्टर ओमप्रकाश देवांगन, और कई साधु संतों ने भाग लिया और यजमान परिवार को आशीर्वाद दिया।

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