Bisleri: बिजनेस की दुनिया में रतन टाटा का नाम एक प्रतीक बन चुका है। वह न केवल एक सफल व्यापारी हैं, बल्कि उनकी लीडरशीप और नैतिकता ने उन्हें एक आदर्श बना दिया है। रतन टाटा का व्यापार जगत में योगदान बहुत ही गहरा और प्रभावशाली रहा है। उनकी कुशल नेतृत्व क्षमता और समाज के प्रति उनका दायित्व एक मिसाल प्रस्तुत करता है।
जब 2022 में बिसलेरी के मालिक रमेश चौहान ने अपनी कंपनी बेचने का फैसला किया, तो यह माना जा रहा था कि इस डील को टाटा ग्रुप के साथ ही फाइनल किया जाएगा। टाटा ग्रुप की मजबूत वित्तीय स्थिति और सामाजिक जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए यह सोचा गया था कि बिसलेरी जैसे ब्रांड के लिए सबसे उपयुक्त खरीदार टाटा ग्रुप ही होगा।
हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया में एक बड़ा मोड़ आया जिसने सभी को चौंका दिया। पहले तो यह माना जा रहा था कि बिसलेरी की बिक्री टाटा ग्रुप के हाथों में होगी, लेकिन अचानक रमेश चौहान ने यह निर्णय लिया कि वह अपनी कंपनी को टाटा ग्रुप को नहीं बेचेंगे। इसके बजाय, उन्होंने इस डील के लिए एक और खरीदार को चुना।
यह निर्णय व्यापारिक जगत में एक अप्रत्याशित कदम के रूप में देखा गया। रमेश चौहान के इस फैसले ने न केवल टाटा ग्रुप बल्कि उन सभी लोगों को चौंका दिया, जो बिसलेरी की बिक्री को लेकर पहले से ही सोच रहे थे कि यह डील आसानी से टाटा ग्रुप के साथ हो जाएगी।
रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा ग्रुप ने हमेशा अपने व्यापारिक निर्णयों में नैतिकता और समाज की भलाई को प्राथमिकता दी है। टाटा ग्रुप ने कई ऐसे फैसले लिए हैं जो व्यापारिक दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण थे, लेकिन समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी को देखते हुए उन्होंने वह फैसले किए। उदाहरण के लिए, टाटा की तरफ से स्थापित की गई टाटा ट्रस्ट्स, जो भारतीय समाज के लिए कई कल्याणकारी परियोजनाओं का हिस्सा रही हैं। रतन टाटा का यह विश्वास रहा है कि व्यापार को केवल मुनाफा कमाने के उद्देश्य से नहीं चलाना चाहिए, बल्कि समाज की भलाई और बेहतर जीवन स्तर के लिए भी काम करना चाहिए।
बिसलेरी के साथ होने वाली डील को लेकर टाटा ग्रुप का नजरिया यह था कि वे इस ब्रांड को एक मजबूत पहचान देने में सक्षम होंगे और इसे और भी बढ़ावा देंगे। टाटा ग्रुप ने बिसलेरी के उत्पादों को और अधिक प्रचारित करने का और इसे अधिक लोगों तक पहुंचाने का विचार किया था। बिसलेरी के साथ यह गठजोड़ दोनों कंपनियों के लिए फायदे का सौदा हो सकता था, लेकिन चौहान का फैसला कि वह इसे किसी अन्य कंपनी को बेचेंगे, यह बता रहा था कि उनके लिए बिजनेस के साथ-साथ अपने ब्रांड और उसकी पहचान को बनाए रखना भी महत्वपूर्ण था।
जब इस डील में टाटा ग्रुप बाहर हो गया, तो यह देखा गया कि व्यापार के क्षेत्र में इतने बड़े और प्रतिष्ठित नामों के बीच निर्णय लेने के पीछे केवल मुनाफे की सोच नहीं होती, बल्कि यह भी देखा जाता है कि कंपनी के भविष्य के लिए वह कदम कितना सही है। बिसलेरी की बिक्री के इस मोड़ ने यह भी साबित कर दिया कि व्यापारिक निर्णय केवल तात्कालिक लाभ पर नहीं बल्कि दीर्घकालिक लाभ और ब्रांड की पहचान पर आधारित होते हैं।
इस घटना ने यह स्पष्ट किया कि रतन टाटा और टाटा ग्रुप का व्यापार केवल एक बिजनेस मोलभाव नहीं है, बल्कि यह समाज के प्रति जिम्मेदारी और नैतिकता का भी प्रतीक है। रतन टाटा का यह तरीका उन्हें एक सशक्त और सम्मानित नेता बनाता है, जिसे सिर्फ व्यापार के दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि उनके सामाजिक दृष्टिकोण से भी देखा जाता है।