GDP Growth: डेलॉयट इंडिया की प्रमुख अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि वित्त वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर अपेक्षाकृत कम रही है। उन्होंने इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारणों की ओर इशारा किया, जिनमें चुनावों से जुड़ी अनिश्चितताएँ, भारी बारिश और वैश्विक जियो-पॉलिटिकल घटनाओं का प्रभाव शामिल हैं। इन कारणों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को प्रभावित किया, जिससे घरेलू मांग और निर्यात दोनों ही प्रभावित हुए।
रुमकी मजूमदार के अनुसार, चुनावी अनिश्चितताएँ किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डालती हैं। चुनावों के दौरान निवेशकों का मनोबल कम हो सकता है, जिससे व्यापार और औद्योगिक गतिविधियों में कमी आती है। इसके अलावा, चुनावी माहौल में सरकार की प्राथमिकताएँ बदल सकती हैं, जिससे नीतियों में अस्थिरता उत्पन्न होती है। यह अस्थिरता आमतौर पर आर्थिक गतिविधियों में मंदी का कारण बनती है, क्योंकि कंपनियाँ और उपभोक्ता भविष्य के बारे में अनिश्चित होते हैं और खर्चों में कटौती करते हैं।
इसके साथ ही, भारी बारिश ने कृषि क्षेत्र को भी प्रभावित किया है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। किसानों की उपज प्रभावित हुई है, जिससे कृषि उत्पादन में कमी आई है और ग्रामीण इलाकों में मांग घट गई है। बारिश से न केवल कृषि उत्पादन प्रभावित हुआ, बल्कि इससे यातायात और परिवहन सेवाओं में भी व्यवधान आया, जो अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को प्रभावित करता है। इससे रोजगार और आय में गिरावट आई, जिससे घरेलू मांग कमजोर पड़ी।
वैश्विक जियो-पॉलिटिकल घटनाएँ, जैसे कि युद्ध, आर्थिक प्रतिबंध, और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान, भारतीय निर्यात को भी प्रभावित कर रहे हैं। भारतीय कंपनियाँ अपनी वस्तुएँ और सेवाएँ विदेशों में भेजने में कठिनाई महसूस कर रही हैं, खासकर उन देशों के साथ जिनमें राजनीतिक या आर्थिक तनाव है। निर्यात में गिरावट के कारण भारतीय उद्योगों को घाटा हुआ है और उत्पादन क्षमता में कमी आई है। यह स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है, क्योंकि निर्यात भारतीय GDP का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इसके अलावा, वैश्विक तेल की कीमतों में वृद्धि और अन्य कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव डाला है। ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि से घरेलू खर्चों में वृद्धि हुई है, जिससे उपभोक्ता खर्च प्रभावित हुआ है। महंगाई दर में भी इजाफा हुआ है, जिसका असर रोजमर्रा के जीवन पर पड़ा है और यह भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को रुकने का एक अन्य कारण बन गया है।
रुमकी मजूमदार ने यह भी कहा कि इन घटनाओं के बावजूद, भारत का दीर्घकालिक विकास दृष्टिकोण मजबूत बना हुआ है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यदि वैश्विक परिस्थितियाँ सुधरती हैं और चुनाव बाद सरकार द्वारा किए गए आर्थिक सुधारों से नीतियाँ स्थिर होती हैं, तो भारतीय अर्थव्यवस्था अगले कुछ वर्षों में फिर से गति पकड़ सकती है। हालांकि, वर्तमान स्थिति को देखते हुए, आर्थिक दृष्टिकोण में सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।
कुल मिलाकर, रुमकी मजूमदार के बयान से यह स्पष्ट होता है कि 2024-25 की पहली छमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था को कई बाहरी और आंतरिक कारकों ने प्रभावित किया है। इन कारकों का मिलाजुला प्रभाव भारत के आर्थिक विकास पर पड़ा है, और इसे सुधरने में कुछ समय लग सकता है।