CG NEWS: वन उपज बिक्री में अड़चनें जटिल प्रक्रियाओं से परेशान व्यापारी

CG NEWS: भारत में वन उपज, जैसे लकड़ी, लाख, गोंद, तेंदू पत्ता, महुआ फूल और अन्य जड़ी-बूटियां, ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के लिए आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। हालांकि, इन उपजों की बिक्री और व्यापार में कई जटिल प्रक्रियाएं शामिल हैं, जो व्यापारियों और संग्रहकर्ताओं के लिए बड़ी बाधा बनती जा रही हैं।

कठिन लाइसेंसिंग और परमिट प्रक्रियाएं

वन उपज के व्यापार के लिए सरकार द्वारा निर्धारित नियम और विनियम अत्यधिक जटिल हैं। व्यापारियों को बिक्री के लिए कई स्तरों पर अनुमति लेनी होती है, जिसमें वन विभाग, स्थानीय प्रशासन और कभी-कभी पर्यावरणीय निकायों की मंजूरी शामिल होती है। इस धीमी और जटिल प्रक्रिया के कारण व्यापारियों को समय पर उपज बेचने में कठिनाई होती है, जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।

बिचौलियों की बढ़ती समस्या

लाइसेंसिंग प्रक्रिया में देरी और जटिलता के कारण छोटे व्यापारी और ग्रामीण उत्पादक बिचौलियों पर निर्भर हो जाते हैं। ये बिचौलिए बेहद कम कीमतों पर उपज खरीदते हैं और ऊंचे दामों पर बेचते हैं, जिससे ग्रामीण समुदायों को उचित मुनाफा नहीं मिल पाता।

डिजिटल प्रक्रिया की कमी और जागरूकता की समस्या

हालांकि सरकार ने ऑनलाइन लाइसेंसिंग और डिजिटल मार्केटप्लेस जैसी पहल की हैं, लेकिन ग्रामीण और वन क्षेत्र के लोग इस प्रणाली से परिचित नहीं हैं। डिजिटल माध्यमों की जानकारी के अभाव में वे सरकारी लाभ और योजनाओं का पूरा उपयोग नहीं कर पाते।

समाधान और अपेक्षाएं

व्यापारियों और ग्रामीण उत्पादकों की समस्या को हल करने के लिए सरकार को सरल और पारदर्शी प्रक्रियाएं लागू करनी चाहिए। डिजिटल जागरूकता बढ़ाने, वन उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने और स्थानीय स्तर पर लाइसेंसिंग प्रक्रिया को तेज और सुगम बनाने की जरूरत है।

अगर ये सुधार किए जाते हैं, तो न केवल वन उपज का व्यापार सुचारू होगा, बल्कि आदिवासी और ग्रामीण समुदायों की आर्थिक स्थिति भी सशक्त होगी।

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