CG NEWS: भक्ति की परिपक्वता प्रभु मिलन का सर्वोच्च मार्ग

CG NEWS: भक्ति केवल साधना नहीं, बल्कि आत्मा का वह उत्कर्ष है, जहाँ समर्पण, प्रेम और पूर्ण विश्वास के साथ भक्त अपने आराध्य से एकाकार हो जाता है। जब भक्ति परिपक्व होती है, तो यह केवल रस्मों-रिवाजों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि हृदय की गहराइयों से उमड़ने वाली एक प्रबल धारा बन जाती है, जो जीव को उसके परम लक्ष्य – प्रभु मिलन – की ओर ले जाती है।

परिपक्व भक्ति में साधक सांसारिक इच्छाओं से मुक्त होकर केवल अपने ईश्वर के प्रेम में लीन हो जाता है। यह अवस्था वह है, जहाँ अहंकार समाप्त हो जाता है और केवल दिव्य प्रेम शेष रहता है। मीरा की भक्ति, सूरदास का समर्पण, तुलसीदास की श्रद्धा – ये सभी भक्ति की परिपक्वता के अद्वितीय उदाहरण हैं।

जब भक्ति अपने चरम पर पहुँचती है, तो उसमें आत्मा और परमात्मा के बीच कोई भेद नहीं रहता। भक्त अपने आराध्य में लीन होकर उसी का अंश बन जाता है। यही भक्ति की परिपक्वता का अंतिम सोपान है – जहाँ भक्त और भगवान का मिलन होता है और आत्मा को परम शांति की प्राप्ति होती है।

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