यह एक गंभीर स्थिति को दर्शाता है, जहां बेरोजगार युवकों को अपने जीवन यापन के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। उनका आर्थिक संकट दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, क्योंकि रोजगार के अवसर कम हैं और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति में दिक्कतें आ रही हैं। बेरोजगारी का यह संकट न केवल इन युवाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल रहा है, बल्कि उनके परिवारों के लिए भी एक गंभीर समस्या बन गया है।
साथ ही, पहाड़ी क्षेत्रों से लाल पानी किसानों के खेतों में जा रहा है, जो उनके कृषि उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। यह लाल पानी मिट्टी को खराब कर रहा है और फसलों के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है। किसान पहले ही प्राकृतिक आपदाओं और अन्य कृषि संबंधित समस्याओं से जूझ रहे थे, अब यह नया संकट उनके लिए और भी मुश्किलें पैदा कर रहा है। इस स्थिति में सरकार और अन्य संबंधित अधिकारियों से उचित कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि इन समस्याओं का समाधान किया जा सके।
रावघाट परिजनों में प्रभावित खोडग़ांव के ग्रामीण बीएसपी (भारतीय स्टेट मिनिंग) प्रबंधन और जिला प्रशासन के खिलाफ लामबंद हो गए हैं। इन ग्रामीणों ने खोडग़ांव में चक्काजाम किया और माइंस के वाहनों की आवाजाही पर पाबंदी लगाने की मांग की। इसके अलावा, उन्होंने 4 सूत्रीय मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन करते हुए तहसीलदार को ज्ञापन सौंपा। ग्रामीणों का यह प्रदर्शन बीएसपी के खनन कार्यों के कारण हो रही समस्याओं का विरोध करने के लिए किया गया है, जिससे स्थानीय निवासियों की रोज़मर्रा की जिंदगी प्रभावित हो रही है।
ये 4 सूत्रीय मांगें स्थानीय जीवन, पर्यावरण, और सामाजिक कल्याण को लेकर हैं, जो इस क्षेत्र के विकास और खनन कार्यों के बीच संतुलन स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं।
बीएसपी की बेरुखी समस्याओं पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया
रावघाट परियोजना के अंतर्गत, बीएसपी (भिलाई इस्पात संयंत्र) प्रबंधन ने यह आश्वासन दिया था कि माइंस शुरू होने से पहले प्रभावित ग्रामों के बेरोजगार युवकों को शत प्रतिशत रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा। इस आश्वासन के तहत, लगभग 900 बेरोजगार युवकों को रोजगार देने की योजना बनाई गई थी।
हालांकि, 2 वर्षों के भीतर, बीएसपी प्रबंधन ने केवल 71 युवकों को रोजगार प्रदान किया है। इसके बाद, बेरोजगार युवकों को रोजगार उपलब्ध कराने में बीएसपी द्वारा कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए हैं। इस स्थिति से स्थानीय युवाओं में निराशा और असंतोष की भावना पैदा हो रही है, क्योंकि उन्हें परियोजना के लाभों से वंचित रखा गया है।
इस संदर्भ में, यह सवाल उठता है कि बीएसपी प्रबंधन ने जो वादा किया था, वह पूरी तरह से पूरा क्यों नहीं किया और बेरोजगार युवकों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए आगे क्या कदम उठाए जाएंगे।
ग्रामीणों का तहसीलदार को ज्ञापन, विकास कार्यों में सुधार की अपील
सड़क के दोनों ओर वाहनों की लंबी कतारें लग गई थीं, जिससे यातायात पूरी तरह से प्रभावित हो गया। यह स्थिति तब उत्पन्न हुई, जब ग्रामीणों ने अपनी विभिन्न मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन किया। ग्रामीणों ने इस प्रदर्शन के दौरान लगभग 2 घंटे तक अपनी आवाज उठाई। उन्होंने मांग की कि जो किसान लाल पानी से प्रभावित होकर अपनी फसलों को खो चुके हैं, उन्हें मुआवजा दिया जाए। साथ ही, बेरोजगार युवकों के लिए शत-प्रतिशत रोजगार प्रदान करने की भी मांग की।
ग्रामीणों ने खोड़गांव में प्रस्तावित खनन कार्य के बारे में पूरी जानकारी देने की भी अपील की, ताकि उन्हें इस परियोजना के प्रभावों के बारे में पूरी समझ हो सके। इसके अलावा, उन्होंने अंजरेल माइंस में काम करने वाले मजदूरों के कार्य परिस्थितियों और उनके रोजगार के अधिकारों को लेकर सवाल उठाए और यह जानना चाहा कि ये मजदूर किसके अधीन कार्य कर रहे हैं। इस संबंध में उन्होंने तहसीलदार सौरभ कश्यप को ज्ञापन सौंपकर इन मुद्दों का समाधान करने की मांग की।
इस ज्ञापन को सौंपकर खोडग़ांव के ग्रामीणों ने जिला प्रशासन और बीएसपी प्रबंधन को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया है। यदि इस अवधि में उनकी मांगों पर विचार नहीं किया जाता है, तो ग्रामीणों ने आंदोलन करने की चेतावनी दी है। उनका कहना है कि बेरोजगार युवकों को अपनी आजीविका के लिए बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही, पहाड़ी से बहकर लाल पानी किसानों के खेतों में जा रहा है, जो उनकी कृषि को प्रभावित कर रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए ग्रामीण प्रशासन और प्रबंधन से त्वरित कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
अंजरेल माइंस में खनन कार्य देव माइनिंग की पहल
यह विवरण एक पत्रकार या मानव लेखक के दृष्टिकोण से ग्रामीण जीवन की समस्याओं को उजागर करता है। इसमें किसानों और मजदूरों की समस्याओं का वर्णन किया गया है, जो लाल पानी के कारण खेती की मिट्टी के लोहायुक्त हो जाने से पैदा हो रही हैं।
मुख्य बिंदु:
- किसानों की समस्या:
- खेतों की मिट्टी में लोहे की अधिकता के कारण फसलें उग नहीं पा रही हैं।
- लाल पानी से खेतों की उपजाऊ क्षमता खत्म हो रही है।
- किसान जीवन यापन के संकट का सामना कर रहे हैं।
- बीएसपी प्रबंधन की भूमिका:
- किसानों को मुआवजा देने में लापरवाही।
- उचित पहल और समाधान का अभाव।
- मजदूरों की स्थिति:
- अंजरेल माइंस में काम करने वाले मजदूरों की जानकारी अस्पष्ट है।
- देव माइनिंग कंपनी खनन का कार्य कर रही है, लेकिन मजदूर बीएसपी प्रबंधन के तहत हैं या देव माइनिंग के, यह ग्रामीणों को स्पष्ट नहीं है।
यह समस्या न केवल किसानों की आजीविका को प्रभावित कर रही है, बल्कि मजदूरों के अधिकार और उनकी सुरक्षा को लेकर भी सवाल खड़े करती है। ऐसे मुद्दों को उजागर करना पत्रकार की जिम्मेदारी है ताकि प्रशासन और संबंधित कंपनियां उचित कदम उठाएं।