BREAKING NEWS : देश के कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को विपक्ष के विरोध के बीच लोकसभा में ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ विधेयक पेश किया। इस विधेयक का आधिकारिक नाम संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024 है। इस विधेयक का उद्देश्य देश में एक साथ लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनावों को आयोजित करना है। यह विधेयक हाल ही में कैबिनेट द्वारा मंजूरी प्राप्त कर चुका है, और इसे अब लोकसभा में पेश किया गया है। इसे लेकर देशभर में विभिन्न प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, जहां सरकार इसे लोकतंत्र को मजबूत करने और चुनावी खर्चों में कमी लाने का एक उपाय मानती है, वहीं विपक्ष इस पर आपत्ति उठा रहा है।
इस विधेयक के अंतर्गत यह प्रस्ताव रखा गया है कि लोकसभा चुनाव के साथ-साथ सभी राज्यों की विधानसभा चुनाव भी एक ही समय पर कराए जाएं। इसका मुख्य उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना और चुनावी खर्चों को कम करना है। अगर यह विधेयक पारित हो जाता है, तो यह देश की चुनावी व्यवस्था में एक बड़ा परिवर्तन होगा। वर्तमान समय में लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे चुनावों के दौरान अक्सर चुनावी खर्चों में वृद्धि होती है और प्रशासनिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग होता है। एक साथ चुनाव होने से इन समस्याओं का समाधान हो सकता है।
इस विधेयक के अनुसार, देश के संविधान में संशोधन किया जाएगा ताकि एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया को कानूनी रूप से लागू किया जा सके। हालांकि, इसे लेकर विपक्षी दलों की ओर से विरोध भी किया जा रहा है। विपक्ष का कहना है कि यह विधेयक संघीय ढांचे के खिलाफ है, क्योंकि राज्यों को अपने-अपने चुनाव तय करने का अधिकार है। वे यह भी तर्क दे रहे हैं कि एक साथ चुनाव कराने से राज्यों में स्थानीय मुद्दों की उपेक्षा हो सकती है और केंद्र सरकार का प्रभाव बढ़ सकता है।
इस विधेयक को लेकर कई विशेषज्ञों की भी मिश्रित राय है। कुछ का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से चुनावी खर्चों में कमी आएगी और चुनावी प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित बनाया जा सकेगा। इसके अलावा, एक साथ चुनाव होने से सरकारों को लंबी अवधि के लिए स्थिरता मिल सकती है, जिससे विकास कार्यों को बेहतर तरीके से लागू किया जा सकता है। लेकिन कुछ अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह विधेयक राज्यों की स्वायत्तता पर हमला है और इसे लागू करने में कई जटिलताएं हो सकती हैं।
एक राष्ट्र-एक चुनाव की योजना का समर्थन करने वाले लोगों का कहना है कि इससे देश के लोकतंत्र को एकजुटता और मजबूती मिलेगी। वे यह मानते हैं कि इससे राजनीतिक अस्थिरता कम होगी, क्योंकि जब अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं, तो इससे राजनीतिक असंतुलन पैदा हो सकता है। साथ ही, इस प्रक्रिया से चुनाव आयोग और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों पर दबाव भी कम होगा।
हालांकि, विपक्ष इस मुद्दे पर लगातार अपनी चिंताओं को व्यक्त कर रहा है। उनका कहना है कि इस विधेयक से राज्यों को अपने चुनावों के बारे में स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार कम हो जाएगा और यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ होगा। इसके अलावा, कई राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारें हैं, जिनकी प्राथमिकताएं और आवश्यकताएं अलग होती हैं। ऐसे में एक साथ चुनावों को आयोजित करना उनके लिए उपयुक्त नहीं हो सकता।
कुल मिलाकर, ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ विधेयक एक बड़ा बदलाव है जो भारतीय लोकतंत्र और चुनावी व्यवस्था को प्रभावित कर सकता है। इसके समर्थन और विरोध दोनों ही पक्षों की अपनी-अपनी वजहें हैं, और इसके लागू होने के बाद क्या प्रभाव पड़ेगा, यह भविष्य में देखा जाएगा।