CG NEWS: साहू दंपति, रंजीता और तुमनचंद भैसमुंडी, पर्यावरण संरक्षण, पोषण, और परोपकार के क्षेत्र में एक प्रेरणास्त्रोत बनकर उभरे हैं। उन्होंने जिले में जल संरक्षण और वृक्षारोपण की दिशा में एक अनूठी पहल शुरू की है, जो न केवल पर्यावरण की रक्षा कर रही है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों को लाभ भी पहुँचा रही है।
उनकी मुहिम ‘पेड़ लगाबो तभे तो फल खाबो’ का संदेश बहुत ही प्रभावी है। यह न केवल पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए प्रेरित करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि पेड़-पौधे और जल संचय के बिना हमारा जीवन कठिन हो सकता है।
इस पहल का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह बच्चों, स्कूलों और किसानों को जोड़ते हुए उन्हें अपने पर्यावरण के प्रति जागरूक कर रही है। स्कूलों में बच्चों को वृक्षारोपण के महत्व के बारे में सिखाया जा रहा है, और किसान अब जल संचय की तकनीकों को अपनाकर अपनी फसल की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ा रहे हैं।
रंजीता और तुमनचंद भैसमुंडी की इस मुहिम ने यह साबित कर दिया है कि यदि समाज का हर व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करे, तो हम पर्यावरण को बचाने और सुधारने में सफल हो सकते हैं। इस तरह के कदम न केवल आज के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
रंजीता और तुमनचंद भैसमुंडी ने अपने खेत में अद्वितीय कार्य किया है, जो न केवल कृषि, बल्कि समाज सेवा की ओर भी एक कदम बढ़ाता है। इन दोनों ने अपनी मेहनत और समर्पण से आधे एकड़ में तालाब का निर्माण किया है, जिससे जल संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इसके साथ ही, उन्होंने 2 एकड़ भूमि पर 1100 फलदार वृक्ष लगाए हैं, जो न केवल पर्यावरण को समृद्ध करते हैं, बल्कि स्थानीय समुदाय के लिए एक स्थिर खाद्य स्रोत भी प्रदान करते हैं।
रंजीता और तुमनचंद की देखरेख में इन पेड़ों से फल प्राप्त होते हैं, जिन्हें वे साल भर समाज के विभिन्न वर्गों में बांटते हैं। ये फल आम जनता, स्कूलों और सामाजिक संस्थाओं को निशुल्क वितरित किए जाते हैं, जिससे सामाजिक उत्थान में योगदान होता है। इसके अलावा, इन दोनों ने आधे एकड़ भूमि पर गौशाला भी बनाई है, जहां गायों की देखभाल होती है।
उनकी यह पहल न केवल कृषि में नवाचार का प्रतीक है, बल्कि समाज में सहयोग और मदद के मूल्यों को भी बढ़ावा देती है। इस तरह, रंजीता और तुमनचंद ने अपने खेत को एक छोटे से हरे-भरे आदर्श गाँव में बदल दिया है, जो पर्यावरण और समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी को दर्शाता है।
अब तक, इस पहल ने 100 से ज्यादा स्कूलों में 15,000 से अधिक बच्चों को ताजे और पोषक अमरूद वितरित किए हैं। यह कदम न केवल बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए उठाया गया, बल्कि स्थानीय समुदायों में ताजे फल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए भी एक महत्वपूर्ण पहल है।
इसके अलावा, किसानों, राहगीरों और विभिन्न संस्थाओं को भी अमरूद बांटे गए हैं, जिससे 20,000 किलो से अधिक अमरूद का वितरण किया गया है। यह मुहिम न सिर्फ मानवता के लिए, बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभकारी साबित हो रही है। इन पेड़ों से न केवल मनुष्य बल्कि हजारों पक्षी भी अपने जीवन की रक्षा कर पा रहे हैं, क्योंकि पेड़ और तालाब उनके लिए आहार और शरण का स्रोत बने हुए हैं।
यह पहल पूरे समुदाय के लिए एक प्रेरणा बन चुकी है, जहां लोग न केवल अपने भले के लिए काम करते हैं, बल्कि पर्यावरण और जीव-जंतुओं की भलाई के लिए भी कदम उठाते हैं। इस प्रकार, इस अभियान ने स्वास्थ्य, पर्यावरण और समुदाय के बीच एक मजबूत और सकारात्मक संबंध स्थापित किया है।
साहू दंपति ने पर्यावरण संरक्षण और समाज कल्याण के लिए एक अद्वितीय पहल शुरू की है। उन्होंने 1100 पपीते के पौधे, 3000 चंदन के पौधे, 1000 सहजन के पौधे और 20000 किलो अमरूद के फल पौधों से लेकर बंदरों और गायों तक वितरित किए हैं। यह पहल न केवल वन्यजीवों की सुरक्षा और उनका पोषण करती है, बल्कि पर्यावरण में भी सुधार लाने का एक महत्वपूर्ण कदम है।
इसके अलावा, साहू दंपति ने 15,000 से 20,000 विद्यार्थियों को प्रेरित किया है ताकि वे अपने आस-पास पेड़ लगाएं और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें। यह पहल समाज में हर स्तर पर जागरूकता बढ़ा रही है, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक हरा-भरा और सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित हो सके।
साहू दंपति की यह मुहिम न केवल उनके गांव या क्षेत्र तक सीमित है, बल्कि उन्होंने इसे राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया है। उनके कार्य को क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर सराहा गया है, और यह एक आदर्श बन गया है।
यदि आप भी इस अभियान से जुड़ना चाहते हैं या साहू दंपति के कार्यों से प्रेरित होना चाहते हैं, तो आप उनसे संपर्क कर सकते हैं और उनके प्रेरणादायक कार्य को अपनी जिंदगी में अपना सकते हैं।