CG News: छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री श्रीमान जयसवाल की अध्यक्षता में शासकीय मेडिकल कॉलेजों की स्वशासी सोसायटियों की बैठक आयोजित की गई। इस बैठक के दौरान, वित्तीय सुधारों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। इन सुधारों का उद्देश्य शासकीय मेडिकल कॉलेजों के प्रशासनिक और वित्तीय कार्यों को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाना है। इसके माध्यम से मेडिकल कॉलेजों की स्वायत्तता बढ़ाई जाएगी, जिससे शिक्षा और चिकित्सा सेवाओं में गुणवत्ता सुधार हो सकेगा।
अब मेडिकल कॉलेजों को लोकल पर्चेस के लिए कुल बजट का 25 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा। पहले यह राशि केवल 10 प्रतिशत थी, जिससे कॉलेजों को अस्पताल में आवश्यक दवाइयाँ, रीएजेंट्स और कंज्यूमेबल आइटम्स खरीदने में कठिनाई हो रही थी। इस नए निर्णय से कॉलेजों को इन चीजों की खरीद में सहूलियत होगी। इसके अलावा, राज्य गठन के बाद पहली बार डीन और अधीक्षकों को उनके अधिकारों में बढ़ोतरी की गई है, जिससे वे बेहतर निर्णय ले सकेंगे और कॉलेज की कार्यप्रणाली को सशक्त बना सकेंगे।
स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल की अध्यक्षता में मंगलवार को 10 मेडिकल कॉलेजों की ऑटोनॉमस कमेटी की बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया कि मेडिकल कॉलेजों के लिए लोकल पर्चेस दवाओं के बजट में 25 प्रतिशत वृद्धि की जाएगी। इससे पहले, 17 जून के अंक में एक समाचार प्रकाशित हुआ था, जिसमें यह बताया गया था कि मेडिकल कॉलेजों में लोकल पर्चेस दवाओं के लिए केवल 10 प्रतिशत बजट आवंटित किया गया था, जो कि नाकाफी था। इस निर्णय के बाद अब मेडिकल कॉलेजों में दवाओं के लिए अधिक बजट उपलब्ध होगा, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की उम्मीद है।
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यह विवरण एक चिकित्सा कॉलेज में होने वाली समस्याओं और उनके समाधान की ओर इशारा करता है। दरअसल, जब डॉक्टर आंबेडकर सहित अन्य मेडिकल कॉलेजों में रेजेंट्स और दवाओं की कमी हो रही थी, तब यह मुद्दा सामने आया कि CGMSC (छत्तीसगढ़ मेडिकल सप्लाई कॉर्पोरेशन) के पास कुल बजट का 90 फीसदी हिस्सा होता है, जबकि कॉलेज प्रबंधन के पास केवल 10 फीसदी राशि उपलब्ध होती है। इससे यह समस्या उत्पन्न हुई कि जब बजट खत्म हो जाता था, तो न दवाओं की खरीद हो सकती थी और न ही रेजेंट्स और कंज्यूमेबल आइटम्स (उपभोक्ता सामग्री) की।
इस कमी के कारण दर्जनों ब्लड टेस्ट्स को रोकना पड़ा था। इसके बाद, बैठक में यह निर्णय लिया गया कि स्वशासी समितियों को सशक्त किया जाएगा, जिससे शासन पर निर्भरता कम होगी और आवश्यक वस्तुएं, जैसे दवाइयां और रेजेंट्स, समय रहते खरीदी जा सकेंगी। इससे मेडिकल कॉलेजों की कार्यक्षमता बढ़ेगी और छात्रों एवं मरीजों को बेहतर सेवाएं मिलेंगी।
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राज्य शासन ने आयुष्मान भारत योजना के तहत प्राप्त क्लेम की राशि को बढ़ाकर 45 फीसदी कर दिया है, जो पहले 25 फीसदी थी। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में जरूरी दवाइयों, मशीनों की खरीद, और मेंटेनेंस के साथ-साथ कंज्यूमेबल सामग्री की खरीदारी में आसानी हो सके।
इसके अतिरिक्त, पहले 1 लाख रुपये से ऊपर के छोटे निर्माण, मरम्मत, और मंत्रालय फाइल भेजने की आवश्यकता थी, लेकिन अब नए निर्णय के तहत 10 लाख रुपये तक का वित्तीय अधिकार संस्थानों को दिया गया है। इसका फायदा यह है कि इसके लिए शासन स्तर से अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे काम जल्दी पूरे हो सकेंगे।
भंडार और रीएजेंट की खरीदी के लिए अब डीन और अधीक्षकों को पूरा अधिकार देने की अनुशंसा की गई है। साथ ही, स्वशासी समितियों का पुनर्गठन भी किया गया है, और सभी कॉलेजों की समिति के अधिकारों में एकरूपता लाई गई है। प्रबंधकारिणी समिति को 2 करोड़ रुपये और वित्त समिति को प्रति कार्य 10 लाख रुपये का अधिकार दिया गया है।
वित्त समिति को केंद्र और राज्य शासन से प्राप्त 5 करोड़ रुपये तक की राशि के अनुमोदन का अधिकार भी प्रदान किया गया है। स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने बताया कि मेडिकल कॉलेजों में वित्तीय अनुशासन और सुधारों के जरिए गुणवत्तापूर्ण सेवाएं देने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य गठन के बाद पहली बार डीन और अधीक्षकों का वित्तीय अधिकार बढ़ाया गया है, जिससे मरीजों के लिए आवश्यक दवाइयां और सामग्री जल्दी उपलब्ध कराई जा सकेगी।