Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति भारत के प्रमुख और ऐतिहासिक त्योहारों में से एक है, जो पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। यह विशेष पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है, जो पौष माह की 14 तारीख को होता है। इस दिन से सूर्य देव उत्तरायण होते हैं, जो एक शुभ संकेत माना जाता है।
मकर संक्रांति का महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी बहुत अधिक है। यह त्योहार खासतौर पर किसानों के लिए महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह नए फसलों की कटाई का समय होता है और इसे फसल उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है। हिंदू धर्म में इसे एक पवित्र दिन माना जाता है, जब सूर्य देव अपनी कुम्भ राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। यह उत्तरायण का प्रारंभ है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार एक शुभ और विशेष समय है। इस दिन लोग सूर्य देव की पूजा करते हैं, आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तिल और गुड़ से बनी मिठाइयों का सेवन करते हैं और संतान सुख, समृद्धि तथा शांति की कामना करते हैं। विशेषकर उबटन, स्नान और दान का महत्व होता है, क्योंकि मान्यता है कि इस दिन किया गया दान और पुण्य कार्य विशेष फल प्रदान करता है।
साथ ही, मकर संक्रांति का त्यौहार भारतीय पारंपरिक खेलों और मनोरंजन से भी जुड़ा हुआ है। खासकर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में इस दिन पतंगबाजी का आयोजन होता है। लोग अपने घरों की छतों से रंग-बिरंगी पतंगें उड़ाते हैं, और यह न केवल मनोरंजन का साधन होता है, बल्कि एक सामाजिक उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
पतंगबाजी में विशेष ध्यान कौशल और रणनीति पर दिया जाता है, और यह प्रतियोगिता का रूप भी ले लेती है। इसके अलावा, इस दिन भव्य मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं, जो लोगों को एकत्र करने और खुशियाँ मनाने का अवसर प्रदान करते हैं।
मकर संक्रांति के दौरान खासतौर पर तिल और गुड़ से बनी मिठाइयाँ जैसे तिल गुड़ लड्डू, तिल खीर, तिल चिक्की आदि बनाए जाते हैं। इनका सेवन खास तौर पर इस दिन किया जाता है, क्योंकि तिल और गुड़ को उबाले जाने के कारण यह शरीर के लिए गर्मी प्रदान करते हैं और सर्दी के मौसम में शरीर को ऊर्जा मिलती है। साथ ही, यह मिठाइयाँ विशेष रूप से दान देने के समय में उपयोगी मानी जाती हैं। इस दिन विशेष रूप से गरीबों और जरूरतमंदों को तिल और गुड़ का दान किया जाता है, क्योंकि यह विश्वास किया जाता है कि इससे पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
मकर संक्रांति का पर्व विभिन्न स्थानों पर विभिन्न नामों से मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है, जबकि दक्षिण भारत में इसे पोंगल के नाम से मनाते हैं। गुजरात और महाराष्ट्र में इसे उत्तरायण कहा जाता है, जबकि पश्चिम बंगाल में इसे ‘पोहेला बोशाख’ के रूप में मनाया जाता है।
इसके अलावा, असम में बिहू, कर्नाटका में शिशिर उत्सव और तमिलनाडु में यह पोंगल के रूप में मनाया जाता है। हर राज्य में यह पर्व अपनी विशिष्ट परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है, लेकिन सभी स्थानों पर इसका मूल उद्देश्य एक ही होता है—सूर्य देव की पूजा करना, फसलों की कटाई का जश्न मनाना और समाज में खुशी फैलाना।
इस प्रकार, मकर संक्रांति न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह भारत के सांस्कृतिक धरोहर और विविधता का प्रतीक भी है। यह पूरे देश को एकजुट करने, सामाजिक सहयोग और भाईचारे की भावना को बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।