RAIPUR: शिव महापुराण कथा में पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा- भगवान को अर्पित करने से बढ़ती है वस्तु की कीमत

RAIPUR: रायपुर के सेजबहार में आयोजित हो रही शिव महापुराण कथा के दूसरे दिन अंतर्राष्ट्रीय कथाकार पंडित प्रदीप मिश्रा जी ने लाखों भक्तों को अपनी कथा के माध्यम से अमृत का रसपान कराया। पंडित जी ने अपनी कथा में भगवान शिव की महिमा और भक्ति के महत्व पर गहरी चर्चा की और यह बताया कि भक्ति का वास्तविक स्वरूप क्या होता है। उनके शब्दों में, भक्ति केवल बाहरी क्रियाओं तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसका मुख्य उद्देश्य भगवान के प्रति श्रद्धा और विश्वास को मन से महसूस करना है।

पंडित जी ने कथा के दौरान बताया कि अगर हम भगवान की पूजा अर्चना कर रहे हैं, लेकिन हमारा मन पूरी तरह से पूजा में नहीं है, तो इसका कोई प्रभाव नहीं होगा। अगर हम मन से भगवान की भक्ति नहीं कर रहे हैं और हमारी श्रद्धा और विश्वास केवल बाहरी दिखावे तक ही सीमित हैं, तो हम जो भी पूजा अर्चना करते हैं, वह व्यर्थ हो जाती है। उनका कहना था कि पूजा का वास्तविक फल तभी मिलता है जब हम उसमें पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ शामिल होते हैं। यदि हमारे मन में भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा और विश्वास हो, तो कोई भी पूजा या अर्चना व्यर्थ नहीं जाती।

पंडित जी ने यह भी कहा कि भगवान की पूजा करते समय हमें अपने मन को पूरी तरह से शुद्ध और पवित्र रखना चाहिए। अगर हम केवल बाहरी रूप से पूजा कर रहे हैं, तो यह हमें आत्मिक उन्नति नहीं दे सकती। भगवान की भक्ति का वास्तविक रूप वह है जब हमारे मन और हृदय में भगवान के प्रति पूर्ण विश्वास और श्रद्धा हो। अगर हम भगवान के प्रति यह श्रद्धा और विश्वास अपने जीवन में लाते हैं, तो हमारी पूजा सच में असरदार होगी और हमारे जीवन में सुख और समृद्धि आएगी।

पंडित प्रदीप मिश्रा जी ने यह भी बताया कि भगवान की भक्ति में समय और स्थान की कोई सीमा नहीं होती। हमें भगवान से किसी विशेष स्थान या समय पर मिलने की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि हमें हर पल और हर क्षण भगवान की भक्ति करनी चाहिए। जब हम इस प्रकार से भगवान से जुड़ते हैं, तो भगवान भी हमारे जीवन में अपनी कृपा बरसाते हैं। उनका कहना था कि भगवान के दर्शन के लिए हमें किसी मंदिर या विशेष स्थान की आवश्यकता नहीं है, बल्कि हमें अपनी आत्मा को शुद्ध करना होगा और भगवान के प्रति अपने मन को पूरी तरह से समर्पित करना होगा।

अंत में पंडित जी ने यह उपदेश दिया कि हमें अपनी भक्ति में निरंतरता बनाए रखनी चाहिए। अगर हम एक बार भगवान से जुड़ जाते हैं और यदि हम अपने जीवन में सच्ची भक्ति को बनाए रखते हैं, तो यह हमें जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाएगा और हम भगवान के द्वारा दिए गए आशीर्वाद का अनुभव करेंगे। भक्ति में एकाग्रता, विश्वास और श्रद्धा बहुत जरूरी है। इन तीनों के साथ हम भगवान की भक्ति को सही दिशा में ले जा सकते हैं और अपने जीवन को सही मार्ग पर चला सकते हैं।

इस प्रकार, पंडित प्रदीप मिश्रा जी की शिव महापुराण कथा ने लाखों भक्तों को भगवान के प्रति सच्ची भक्ति और श्रद्धा का महत्व समझाया और यह भी बताया कि असली भक्ति वही है, जो मन से भगवान के प्रति श्रद्धा और विश्वास के साथ की जाती है।

शिव महापुराण की कथा में आचार्य ने भक्तों को सनातन धर्म की महिमा और उसकी सही दिशा की ओर मार्गदर्शन दिया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि हमारे हिंदू भाई-बहनों को अपने धर्म को मजबूत करने के लिए कार्य करना चाहिए, विशेष रूप से अपने बच्चों को हमारे वीरों और संतों की गाथाओं से अवगत कराना चाहिए। बच्चों को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्या माता, और वीर शिवाजी जैसे महान व्यक्तित्वों की कथाएं सुनाना और उन्हें उन जैसे वीरता से प्रेरित वस्त्र पहनाना, बच्चों में वीरता की भावना को जागृत करने में मदद करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि भारत वीर सपूतों का देश है और हमें अपने बच्चों को उसी दिशा में शिक्षित करना चाहिए, ताकि सनातन धर्म को आगे बढ़ाया जा सके। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों को ऐसे कपड़े नहीं पहनाने चाहिए, जिससे वे जोकर की तरह नजर आएं, क्योंकि यह हमारे संस्कृति और परंपराओं का अपमान करता है।

कथा में पंडित प्रदीप मिश्रा ने भगवान शिव की महिमा का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि भगवान भोलेनाथ यह नहीं कहते कि उन्हें धन, संपत्ति या पूंजी चाहिए, बल्कि वे अपने भक्तों से सिर्फ समय, भाव और समर्पण की उम्मीद रखते हैं। अगर भक्त उन्हें एक लोटा जल, एक पत्र, एक पुष्प या अक्षत चढ़ाते हैं, तो भगवान उसे स्वीकार करते हैं, क्योंकि उनके लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि भक्त भाव से क्या चढ़ा रहे हैं। भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों से यह नहीं देखना चाहते कि वे महंगे आभूषण या वस्तुएं चढ़ा रहे हैं, बल्कि वे यह देखते हैं कि भक्त का भाव कितना शुद्ध है। इस प्रकार, भक्तों को यह सिखाया गया कि भगवान से जुड़ी हर क्रिया में भावनाओं की पवित्रता और समर्पण की भावना होनी चाहिए।

आचार्य ने नववर्ष की उपलक्ष्य में एक महत्वपूर्ण संदेश दिया कि हिंदू नववर्ष चैत्र माह में मनाना चाहिए, जब हम भगवान की भक्ति और मंदिरों में पूजा करते हैं। वहीं, उन्होंने अंग्रेजी नववर्ष के दौरान शराब और फूहड़ता की बजाय, शिवालयों में जाकर खुशियां मनाने का आह्वान किया। इस प्रकार, उन्होंने बताया कि नववर्ष को एक धार्मिक और संस्कृतिपूर्ण तरीके से मनाना चाहिए, ताकि जीवन में सकारात्मकता और भगवान का आशीर्वाद बना रहे।

तिलक के महत्व पर चर्चा करते हुए आचार्य ने चार प्रकार के तिलक के बारे में बताया जो विभिन्न कार्यों के लिए उपयोगी होते हैं। उन्होंने कहा कि सफेद आंकड़े की जड़ का तिलक किसी भी कार्य में बाधाएं आ रही हों, तो उसका समाधान करता है। इसी प्रकार, अपामार्ग के बीज का तिलक किसी को उधार पैसा देने में समस्या हो तो उसे हल करता है, और दूर्वा का तिलक व्यापार में सफलता दिलाता है। बेलपत्र की जड़ का तिलक सत्य की विजय के लिए होता है, जो असत्य से जुड़े मामलों में मदद करता है। इन तिलकों के जरिए आचार्य ने भक्तों को जीवन में सफलता प्राप्त करने के आसान और सरल उपाय बताए।

शिव महापुराण कथा के आयोजक परिवार, देवांगन परिवार, की सराहना करते हुए पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि इस कथा के माध्यम से भक्तों को उनके पापों की मुक्ति और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होगी। उन्होंने बताया कि इस कथा को सुनने से भक्तों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आएगा और भगवान शिव उनके पापों को नष्ट कर देंगे। इस कथा में भक्तों की भारी संख्या में उपस्थिति से यह स्पष्ट हुआ कि धर्म और भक्ति की शक्ति आज भी हमारे समाज में प्रबल है।

कुल मिलाकर, शिव महापुराण की कथा एक अवसर थी, जब भक्तों को भगवान शिव की महिमा, तिलक के उपायों, और सही दिशा में कार्य करने के बारे में जानकारी मिली। इस प्रकार, यह कथा न केवल धार्मिक ज्ञान का प्रचार करती है, बल्कि समाज में एकता और सकारात्मक बदलाव की दिशा में भी काम करती है।

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